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लेखक: रिनचिन
चित्र: जीतेन्द्र ठाकुर
अनुवादक: सुशील जोशी
प्रकाशक: एकलव्य
पृ-24 , मूल्य: 40 रूपये
टिंटी कहती है कि वह एक बिल्ली है l पर उसकी माँ कहती है कि वह उसकी नन्ही सी बेटी है l टिंटी है कौन? यह कहानी इसी प्रश्न का जवाब ढूंढते हुए बचपन की मज़ेदार सोच और मासूम ख्यालों को दर्शाती है|
टिंटी हर काम को बिल्ली की तरह करने की कोशिश में लगी रहती है और उसका यही मज़ेदार प्रयास उसे इस समझ की तरफ ले जाता है कि वो कितनी बिल्ली और कितनी टिंटी है|
लेखिका रिनचिन द्वारा लिखी गयी यह कहानी बहुत ही सरल और दिल को छू लेने वाली हैl इस कहानी में उन्होंने बहुत ही सुंदरता के साथ बचपन की मासूम कल्पना और उसकी अनन्त सीमा, के भाव को व्यक्त किया है l यह कहानी हर किसी को उनके बचपन के आज़ाद और सीमाहीन पलों को कुछ पल दुबारा जीने के लिए मजबूर कर देगी|
लेखिका ने टिंटी और उसकी माँ के बीच के प्यार भरे रिश्ते और आपसी समझ को भी बड़ी समझदारी से दिखाया है l यह कहानी हमें अपने आस –पास और साथ ही साथ अपने अंदर के बचपन को बेरोकटोक उड़ान भरने के लिए भी प्रोत्साहित करती है|
इस कहानी के चित्रकार जीतेन्द्र ठाकुर ने बहुत ही बखूबी से टिंटी के विचार और उसके आस -पास की दुनिया को विविध रंगों से चित्रित किया है l टिंटी के ही मन की भांति उन्होंने चित्रों को भी निराकार और आज़ाद भाव से सराबोर किया है|
हाशिए पृष्टभूमि के बच्चों को ध्यान में रख कर लिखी गयी यह एक अनूठी कहानी है क्योंकि इस तरह की कहानियां बहुत कम पढ़ने को मिलती हैं l साथ हीं अपनी सहज और बनावटीपन से परे भाषा के कारण यह बच्चों को पल में अपनी ओर आकर्षित कर लेती है और क्षण भर में यह कहानी उनकी अपनी हो जाती है|
यह उत्तम चित्र कथा सरल और मजेदार होने के साथ साथ अर्थपूर्ण और गहरी भी है|
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